12 अप्रैल 2010

ग्लोबलाइज्‍ड हिंदी

-चंदन सिंह

पी-एच।डी. भाषा-प्रौद्योगिकी विभाग


भूमंडलीकरण के इस दौर में मानव जीवन एवं व्यवहार के हरएक पहलू में निरंतर बदलाव सहज ही महसूस किए जा सकते हैं। खासकर भाषा के संदर्भ में सूचना माध्यमों के बढ़ते प्रभाव ने जिस तरह से सामाजिक परिवर्तन को तीव्रता प्रदान की है, संपूर्ण विश्व एक गांव का आकार ले रहा है, तो ऐसी स्थिति में हिंदी और इसका भाषिक स्वरूप समकालीन व्यवहार और परिवर्तन की बयार से कैसे बचा रह सकता है? आज हिंदी ने जिस प्रकार का नया रूप अख्तियार किया है, जिस मिलती-जुलती भाषिक संस्कृति के रूप में स्वंय को प्रस्तुत किया है, वह भूमंडलीकरण का ही प्रभाव है। हिंदी का यह नया संस्करण उदार है, बहुरंगी है। हिंदी नए-नए शब्द गढ़ रही है। हो सकता है कि आज ये नए शब्द सुनने में अटपटे लगे, किंतु कल हिंदी के किसी नए शब्दकोश का हिस्सा बन सकते हैं। विश्व के विभिन्न भाषाओं के शब्दों को हिंदी जिस तरह से आत्मसात कर रही है, उससे अंदाज लगाया जा सकता है कि भविष्य की हिंदी का चेहरा कैसा मानकीकृत स्वरुप धारण किए होगा।

हिंदी का यह नवीन रूप विश्व में इस कदर व्याप्त है कि विश्व के अनेक देशों में हिंदी के कई समाचार-पत्र और पत्रिकाएँ प्रकाशित हो रही हैं जिसमें एक नए किस्म की हिंदी रची जा रही है। विभिन्न भारतीय एवं विदेशी विज्ञापन, बाजार तथा कंपनियां जिस तरह हिंदी के प्रति अपना प्रेम प्रदर्शित कर रही है, वह विश्व स्तर पर हिंदी के ठोस आधार का परिचायक है। इसका एक उल्लेखनीय उदाहरण है अमेरिकी दूतावास ने अपने नवनिर्वाचित राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा दारा शपथ ग्रहण करने के बाद दिए गए भाषण का हिंदी अनुवाद जारी किया है तथा इस भाषण के लिए अमेरिकी जनसंपर्क विभाग ने अपना लेटरपैड भी हिंदी में प्रकाशित किया है।

दरअसल, हिंदी का यह मिश्रित स्वरूप भूमंडलीकरण के परिदृश्य में व्यवसायिकता का आवरण लिए हुए है। यह समझ लेना चाहिए कि अब हिंदी केवल हिंदी पट्टी की ही भाषा नहीं रह गई है। लंदन के 'तुषाद् संग्राहलय' में स्थापित बालीवुड सितारों की मोम प्रतिमा यह साबित करने के लिए पर्याप्त है कि हिंदी अब सात समुंदर पार तक पहुंच चुकी है। हालांकि, सात समुंदर पार कर हिंदी के ग्लोबलाइजेशन की प्रक्रिया बहुत कठिन और जटिल रही। इस संदर्भ में हिंदी से हिंग्लिश की लोकप्रियता कम रोचक नहीं है। वैसे हिंदी के विस्तार के लिए यह वरदान साबित हुआ है क्योंकि जीवित रहने और फलने-फूलने के लिए 'बदलाव' एक अनिवार्य शर्त होती है। गोया, हिंदी को विश्व स्तर पर, संपर्क, रोजगार एवं सांस्कृतिक भाषा के तौर पर स्थापित करता है तो इसे नवीन प्रौद्योगिक के साथ-साथ इसके प्रयोजनमूलक संदर्भ में सामंजस्य स्थापित करना होगा, जिससे न केवल हिंदी का प्रचार प्रसार होगा बल्कि रह रोजगारपरक भाषा भी बनेगी। कारण स्पष्ट है कोई भाषा जब तक अपने बोलने व समझने वालों के लिए रोजगार का साधन नहीं बनती तबतक लोगों का उसके प्रति आकर्षित होना संदिग्ध होता है, क्षणिक होता है । हिंदी भाषा के संदर्भ में यह सुखद है कि इसका मिश्रित स्वरुप आज के भारतीय युवा वर्ग की पसंद है जो कुल भारतीय आबादी का एक बहुत बड़ा हिस्सा है तथा बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए एक विशाल बाजार भी है। इसी कारण इस मिश्रित हिंदी के लिए विश्व बाजार रोजगार के लाखों अवसरों से भरा पड़ा है, जिसमें करोड़ो डालर की पूंजी निवेश की गई है।

हिंदी का यह नया मानचित्र इंटरनेट के साथ हिंदी के रिश्तों का ब्यौरा किए बिना पूरा नहीं हो सकता। इंटरनेट एक नवीन लेकिन तेजी से उभरता हुआ संचार माघ्यम है। बतौर भाषा हिंदी का प्रौद्योगिकी के साथ पहले-पहले एक उद्यमहीन और हिचकता हुआ रिश्ता रहा है, किंतु अब इंटरनेट पर गुगल, हॉटमेल या याहु सभी ने अपने हिंदी संस्करण शुरु कर दिए है। माइक्रोसॉफ्ट द्वारा युनीकोड और हिंदी में सहजता से सीखने की सुविधा मिलने के बाद ब्लॉग-संस्कृति बिना किसी रोक-टोक के चल पड़ी है।

किंतु सवाल यह है कि क्या हिंदी भाषा के इस रूप को सहज तकनीकी विकास और बाजार की जरुरतों का प्रतिफल मान लिया जाए या फिर हिंदी के इस नए चेहरे को सिर्फ बदलती परिस्थितियों की देन मानकर संतुष्ट हो लिया जाए। यहां यह भी स्मरणीय है कि हिंदी भाषा का यह चेहरा कई मायनों में विगत कुछ वषों की धूप-छांव का सामना करते हुए निखरा है। कई मायनों में यह परिवर्तनशील समाज का प्रतिबिंब है जिसके तहत हिंदी ने अपना नया रुप धारण किया है, विकसित किया है। यह स्वाभाविक है कि हिंदी को ग्लोबल होने के लिए नए रुप में ढ़लना ही होगा।

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