30 मार्च 2010

भाषा के प्रकार्य

प्रवीण पाण्डेय
एम।ए।हि.(भा.प्रौ.)
भाषा का प्रकार्यात्मक अध्ययन प्राग स्कूल की देन है। इस स्कूल की स्थापना 1926 ई. में हुई। इसके मूल संस्थापक विलेम मथेसिउस (Vilem Mathesius) हुए जो कैरोलाइन विश्वविद्यालय में प्राध्यापक थे। प्राग स्कूल की सर्वप्रमुख विशेषता भाषा का प्रकार्य के आधार पर विश्लेषण करना था। और इसमें यह दिखलाने की कोशिश की कि प्रत्येक संरचना अवयव का समस्त भाषा के प्रयोग के संदर्भ में क्या प्रकार्य होता है। इसलिए इस सिध्दांत को प्रकार्यात्मक भाषा विज्ञान (Functional Linguistics½ का नाम दिया गया है। अत: प्राग स्कूल को प्रकार्यवादी स्कूल या सम्प्रदाय भी कहा जाता है। प्राग सम्प्रदाय में इस दिशा में कार्य करने वाले प्रमुख भाषा वैज्ञानिक निकोलायी सेर्गेयेविच त्रुवेत्स्कॉय , आंद्रे मार्टिने तथा रोमन याकोव्सन हैं। प्रकार्यात्मक भाषाविज्ञानी भाषा की सन्दार्भाश्रित शैलियों को भी महत्वपूर्ण मानते हैं।
इनका मानना है कि अलग-अलग सामाजिक सन्दर्भों में वक्ता अलग-अलग शैलियों का प्रयोग करता हैं।
निकोलायी सेर्गेयेविच त्रुवेत्स्कॉय प्रकार्य सिध्दांत को स्वनिम के क्षेत्र में प्रयोग करने लिए विख्यात हुए। आंद्रे मार्टिने ने ध्वनि- परिर्वतन पर विचार किया और परस्पर स्वनिमों की प्रकार्यात्मक उपयोगिता की व्याख्या करने का प्रयत्न किया।
इसी काल में आस्ट्रिया में एक मनोवैज्ञानिक कार्ल ब्रुल्हर हुए जिन्होनें भाषा के प्रकार्यात्मक सिध्दांतो को लेकर महत्वपूर्ण बात कही। इनका मानना था कि भाषा एक संकेत व्यवस्था है किन्तु यह सम्प्रेषण का एक उपकरण है। इस उपकरण के माध्यम से वक्ता स्रोता से कुछ कहता है। इस प्रकार भाषा उपयोग के तीन आधारभूत तत्व हैं-
वक्ता
स्रोता
विषय संदर्भ
ये तीनों कारक तत्व सम्प्रेषण के साथ सहसंबध्द होते हैं अर्थात् यदि इनमें से एक भी बदल जाय तो सम्प्रेषण बदल जाएगा। इन तीनों आधारों को लेकर उन्होंने भाषा के तीन प्रकार्यों की बात की हैं-
1- संकेत और वक्ता के संदर्भ में भाषा का अभिव्यंजक प्रकार्य होता है।
2- संकेत और स्रोता के संदर्भ में भाषा का आर्कषक प्रकार्य होता है।
3- संकेत और विषय के संदर्भ में भाषा का निरूपक प्रकार्य होता है।
रोमन याकोव्सन भी भाषा के तीन आधारभूत तत्व माने हैं-
1. वक्ता
2. श्रोता
3. सन्दर्भ
वक्ता की दृश्टि से भाषा अभिव्यक्ति का प्रकार्य, श्रोता की दृश्टि से प्रभाविक प्रकार्य और सन्दर्भ की दृश्टि से साम्प्रेषणिक प्रकार्य करती है। इसके अतिरिक्त तीन सन्दर्भ- कूट, सम्पर्क और सन्देश भी भाषा बनाती है। इसके आधार पर रोमन याकोब्सन ने भाषा के छह
प्रकार्य माने हैं-
1. अभिव्यक्तिक प्रकार्य (Expressive Function)
2. इच्छा परक प्रकार्य (Conative Function)
3. अभिधापरक प्रकार्य (Donative Function)
4. सम्पर्क परक प्रकार्य (Phatic Function)
5. आधिभाषिक प्रकार्य (Codifying Function)
6. काव्यात्मक प्रकार्य (Poetic Function)
प्रकार्यवादियों के अनुसार भाषा की संरचना प्रकार्य के अनुरूप बदल जाती है। इस प्रकार एक ही भाषा प्रकार्यानुसार भिन्न-भिन्न रूपों में प्रस्तुत होती है। उपर्युक्त छह रूप भाषा के अभिव्यक्तिक सन्दर्भ से जुड़े हैं।
रोमन याकोव्सन ने भाषा के प्रकार्यो का निर्धारण करके भाषा के अभिलक्षणों और ध्वनियों का अध्ययन किया है। इन्होंने स्वनिमों को प्रभेदक अभिलक्षणों का गुच्छ (bundle) कहा, जो इनकी महत्वपूर्ण देन है।

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