08 सितंबर 2009

भाषाविज्ञान के परंपरागत अनुप्रयोग बनाम आधुनिक अनुप्रयोग

राहुल एन. म्हैस्कर
व्याख्याता, भाषाविज्ञान विभाग,
डेक्कन कॉलेज, पुणे

भाषाविज्ञान भाषा का वैज्ञानिक अध्ययन प्रस्तुत करता है, जहां भाषा का सैद्धांतिक एवं व्यावहारिक अध्ययन किया जाता है । भाषाविज्ञान परंपरागत रूप से भाषा के विभिन्न आयामों का अध्ययन करता आ रहा है । इनमें जहां मानव द्वारा उच्चरित ध्वनियों का अध्ययन करने के लिए ध्वनि प्रजनक तंत्र ‘एम्प्लीफायर’ आदि का निर्माण किया जा रहा है । वहीं आज की आधुनिक प्रक्रिया में भाषाविज्ञान के नए आयाम संगणकीय भाषाविज्ञान द्वारा ध्वनि से संबंधित ‘प्रात’ आदि ध्वनि तरंग को स्पष्ट करने वाले तंत्र विकसित किए जा रहे है । जो वाक्–प्रौद्योगिकी के अन्तर्गत वाक्–अभिज्ञानक तथा सर्जक के रूप में विकसित किया जा रहा है । जिसके द्वारा वाक्–से–पाठ, पाठ–से– वाक् और स्वचलित वाक् अभिज्ञानक तंत्र भी विकसित किए जा रहे है ।
परंपरागत व्याकरण में भाषा के नियमों को एकसूत्रता में बांधा जाता था तथा भाषा को उन्ही नियमों द्वारा सीखने – सिखाने का कार्य भी चलता था लेकिन यह व्याकरण किसी एक भाषा के लिए ही उपयोगी था । इसलिए प्रसिद्ध भाषाविज्ञानी नोअम चोम्स्की द्वारा सार्वभौमिक व्याकरण बनाया गया लेकिन संगणक के इस जगत में यह व्याकरण भी संगणकीय व्याकरण में परिवर्तीत हो गया । जो मशीनी अनुवाद अनुप्रयोग विकास में उपयुक्त है । संगणकीय व्याकरण भाषा की सभी कोषीय इकाईयाँ तथा व्याकरणीक कोटियों को नियमों में बांधकर संगणक में उसे सृजित करता है तथा भाषा के प्रति संगणक की समझ को विकसित करता है । परंपरागत भाषाविज्ञान में भाषिक संरचना का विश्लेषण तथा सर्जन मानव खुद कोषीय इकाईयाँ एवं व्याकरणिक इकाईयों की सहायता से करता था। लेकिन आज के संगणकीय युग में यह कार्य मशीन द्वारा किया जाने लगा । मानव एक ही तरह की संरचना में भी कभी – कभी गलतियाँ कर देता है । लेकिन संगणक ऐसी गलतियाँ नहीं करता तथा संगणक बड़े से बड़े कार्य को भी एक मिनट के अंदर पूर्ण कर देता है।
केशनिर्माण का कार्य भी बहुत श्रमसाध्य एवं समयसाध्य है । शब्दों को एक क्रम में लाना तथा अलग–अलग कार्ड बनाकर उनमें सूचनाओं का संग्रह करना और फिर पुस्तक के रूप में प्रकाशित करना इसमें काफी श्रम और समय खर्च होता था। लेकिन संगणक इनमें से बहुत सारा कार्य खुद ही कर लेता है । जैसे – शब्दों का क्रम लगाना । इसलिए इसमें श्रम एवं समय की बचत होती है । परंपरागत कोश में जहाँ सालों लग जाते थे वहा आज कम समय में यह कार्य होता है इतना ही नहीं भी ले जाना आसान होता है । यह अध्ययन संगणकीय कोश निर्माण के रूप में किया जाता है । तथा इसे यहां से वहां ले जाना आसान होता है और बोझ भी नहीं होता यह अत्यंत उपयोग में सरल होता है ।
वर्तनी जाँच हेतु मनुष्य को काफी मेहनत करनी पड़ती है । एक–एक शब्द को जाँचना पड़ता है और संदिग्ध शब्दों को शब्दकोष में देखना पड़ता है । अगर जाँचकर्ता उस भाषा को जन्म से जानने वाला नहीं है तो उसे और भी अधिक परेशानियाँ होती है । इसमें श्रम के साथ – साथ समय भी काफी अधिक खर्च होता है । लेकिन आज की आधुनिक तकनीक में संगणक के द्वारा यह कार्य वर्तनी जाँचकर्ता के द्वारा किया जाता है । जिसे संगणक मानव द्वारा दिए गए नियमों, डाटाबेस और समझ के साथ अपने आप ठीक कर लेता है । इससे मानव श्रम तथा समय की काफी बचत हो रही है ।
अनुवाद का कार्य मानव द्वारा किए जाने पर एक ही पाठ का अनुवाद अलग–अलग मनुष्यों द्वारा अलग – अलग किया जाता है । साथ ही मानव जब अनुवाद का कार्य करता है, तो उसे कभी सही शब्द का चुनाव शब्दों को न जानना तथा वर्तनी आदि कई स्तरों पर मानव को काफी समय खर्च करना पड़ता है । मशीन इन स्तरों को आसानी से पार कर जाती है और मानव को आऊटपुट के रूप में एक बेहतर अनुवाद उपलब्ध कराता है।
निष्कर्षत: कहा जा सकता है कि परंपरागत भाषाविज्ञान के अनुप्रयोगों का स्थान आधुनिकीरण एवं बाजारीकरण के इस दौर में भाषाविज्ञान के क्षेत्र में नई योजनाओं के साथ भाशिक अध्ययन के लिए एवं मानव मषीन अंतरक्रिया के लिए नये–नये अनुप्रयोगों ने ले लिया है । भाषा शिक्षण के क्षेत्र में भी आज परंपरागत शिक्षा और शिक्षण प्रणाली का स्थान आज संगणक ने ले लिया है। इस तरह से भाषाविज्ञान संगणकीय भाषाविज्ञान के नाम से प्रचलित हुआ है ।

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